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मेरे पिता का सपना – रोहित आनंद

neerajtimes.com – मेरा जन्म 19 अक्टूबर 2009 को पूर्णिया जिले के लाइन बाजार में स्थित श्रेया वैक्सीनेशन सेंटर नमक क्लीनिक में हुआ है। मेरे पिताजी अजीत कुमार सिंह है। मेरी मां का नाम स्वर्गीय आंसू देवी है। जब मैं पहली बार पूर्णिया में अपने घर गया तो मुझे सबसे पहले मेरे बड़े दादा जी स्वर्गीय श्री जयंती प्रसाद सिंह एवं मेरी बड़ी दादी ने मिलकर आशीर्वाद दिया मुझको। जब मेरे बड़े दादा जी एवं बड़ी दादी ने मुझको आशीर्वाद दिया तब मैं उन्हें नहीं जानता था। यह कौन है? फिर मैं कुछ वर्षों के बाद अपने गांव आ गया। बड़े ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है। मेरे जन्म के तुरंत 3 साल बाद मेरी मां मुझको छोड़ कर चली गई। मैं उस वक्त शायद 3 या 4 साल का था। मैं बहुत दिनों तक रोता रहा। मैं अपने पिताजी से करीबन 1 साल तक पूछता रह गया। पापा मेरी मम्मी कहां गई है? मेरे पिताजी बोलते थे। रोहित तुम्हारी मम्मी भगवान जी के पास चली गई है। वह कभी लौटकर वापस नहीं आ पाएगी। मैं बहुत देर तक रोता रहा रोता रहा फिर भी मेरी मां लौट कर वापस नहीं आई। मुझे तो याद नहीं है लेकिन मेरी दादी को याद है। मैं जब छोटा था। मुझे उतना समझ भी नहीं था। मैं एक काम किया करता था। मेरे पास बटन वाला मोबाइल रहा करता था। उसी मोबाइल से हम अपनी मां को फोन लगाया करते थे। मुझे मेरी मां का मोबाइल नंबर याद हो गया था उस वक्त। वह मोबाइल फोन जो मोबाइल फोन मेरी मां का था, वह मोबाइल फोन मेरी बुआ जी के पास था। उनके पास ही रहता था। मैं प्रतिदिन कॉल लगाया करता था। मेरी बुआ फोन उठा लेती थी। मैं  नहीं पहचानता था। वह मेरी बुआ है। मैं बोलता था। मां तुम कब आओगी मेरे पास। उधर से उत्तर आता था। बेटा मैं अभी अपने घर में हूं। मुझे कोई काम है। मैं अभी नहीं आ पाऊंगी। फिर ऐसा समय आया था। मेरे पास तब मैं जान गया की मेरी मां तो इस दुनिया से मुझको अलविदा कह गई। मैंने अपना होश संभाला। बाद में मैं अपनी मां के लिए कभी भी नहीं रोया। उसके बाद मेरा दाखिला एंबीशन पब्लिक स्कूल, शंभूगंज, बांका में 2012 में हुआ। मेरा दाखिला नंबर 305 था। मेरे विद्यालय के निर्देशक भी बहुत दयालु हैं एवं भोले हैं। मेरे विद्यालय के प्रधानाचार्य भी बहुत ही अच्छे स्वभाव के व्यक्ति हैं। मेरे विद्यालय के निर्देशक महोदय का नाम कौशल कुमार सिंह है। मेरे विद्यालय के प्रधानाचार्य महोदय का नाम श्री मनोरंजन कुमार सिंह है। मेरे विद्यालय के उप प्रधानाचार्य महोदय का नाम अशोक जाधव है। मेरे विद्यालय के इन तीनों शिक्षकों का घर शंभूगंज ही पड़ता है। मैं जब शंभूगंज वाले स्कूल में था। तब मेरे गांव की एक मैडम जिनका नाम सोनिया कुमारी है। उनके साथ ही में स्कूल से आया जाया करता था। मेरे स्कूल के बगल में ही एक अमरूद का पेड़ था। मैं उस वक्त बहुत ही छोटा था। जब मैं अमरुद देख लेता तब मुझसे रहा नहीं जाता था। अगर मुझे अमरुद नहीं मिलता था। तब मैं रोने लगता था। बहुत जिद करता तब मुझे एक मीठा मीठा अमरूद मिलता। जब मैं शंभूगंज वाले विद्यालय में था, मैं कक्षा दो या तीन में पढ़ता था। मेरी मैथ्स टीचर सुईली मिस थी। फिर एक दिन ऐसा समय आया मेरे पास चौतरा वाले स्कूल में आ गया पढ़ाई करने के लिए। मैं इस स्कूल में जब आया तब मैं शायद 10 या 11 वर्ष का था। मैं बहुत वर्षों से यह स्कूल आ रहा हूं। और आता रहूंगा, जब तक मैं पूरा स्कूल कंप्लीट ना कर लूं। लॉकडाउन लगने के कारण मैं शंभूगंज में ज्ञानदीप कंप्यूटर एजुकेशन नामक कंप्यूटर सेंटर में कंप्यूटर सीखने जाया करता था। कंप्यूटर सेंटर के निर्देशक का नाम आशुतोष कुमार सिंह था। इनका घर झखरा पड़ता है। इनके पिता का नाम पंकज चौधरी है। यह मेरे 1 तरह के नानाजी और मामा जी लगेंगे। मैं फिर क्लास 6 से चौतरा वाला स्कूल आने लगा। तब मुझे कम से कम 5 या 6 नए-नए शिक्षक एवं शिक्षिका मिले। मैंने एक नए शिक्षक को अपना प्रिय शिक्षक मान लिया। जिनका नाम समीर सिंह राठौर है। क्योंकि इनका बॉडी लैंग्वेज पूरा का पूरा अलग ही था। यह एक कवि भी हैंं। इनका घर बंशीपुर पड़ता है। दूसरे ने शिक्षक तो मेरे वर्ग शिक्षक ही बन गए। जिनका नाम रजनीश कुमार सिंह। इनका घर बिशनपुर पड़ता है। तीसरी मुझे एक नई मिस मिली। जिनका नाम निकिता कुमारी है। मुझे बहुत नए-नए दोस्त मिले। जिनमें से एक का नाम आयुष कुमार गौरव है। इसका घर चटमा बाजार पड़ता है। इसके पिता का नाम हीरेंद्र प्रसाद सिंह है। एक नया दोस्त मिला मुझे जिसका नाम उज्जवल कुमार सिंह। अब मैं अपने घर के लोगों से परिचय करवाता हूं। मेरे अपने दादाजी का नाम श्री नारायण प्रसाद सिंह है। मेरे दादाजी का नाम श्रीमती नंदनी देवी है। इनके पांच पुत्र एवं एक पुत्री हैं। मेरे दादाजी तीन भाई है। जिनमें से एक तो निधन हो गया है। वह कभी मिलिट्री में रहा करते थे। मैं एक दिन अपने शिक्षकों से बातचीत में यह कह दिया था। मेरे पापा मुझको कहीं पर भी घुमाने के लिए नहीं लेकर जाते हैं। तब उधर से मेरे निर्देशक महोदय कौशल सर का उत्तर आया था कि पिताजी के सम्मान में अपने इच्छाओं को कुर्बान कर देना सबसे बड़ा संस्कार है। पहले मैं एक मीडिया रिपोर्टर (पत्रकार) बनना चाहता था। मेरे पिताजी का सपना कुछ और ही था। वह मुझे आईएएस बनवाना चाहते थे। जब मैंने अपने निर्देशक महोदय का बात सुन लिया तब मुझे यह खयाल आया कि पिता के सम्मान में बेटा अगर अपने इच्छा को कुर्बान कर दे। तो वह कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी। वह कुर्बानी सबसे बड़े संस्कार में जाएगी। मेरे कक्षा की वर्ग शिक्षक रजनीश सर अपने गांव में भी मेरे इस अनुशासन एवं संस्कार का चर्चा किया करते थे। मेरे सभी बदमाशी करने वाले मित्रों को मेरा उदाहरण दिया करते थे। बोलते थे मेरे सारे कक्षा के विद्यार्थियों को तुम सभी लोग रोहित के तरह बनो। तब मैं अपने क्लास में क्लास मॉनिटर था। आने वाले 19 अक्टूबर 2022 को मैं 13 वर्ष का हो जाऊंगा। मेरा एक विषय है। जिसमें मैं बहुत जानता हूं। उस विषय हिंदी में सामान्य ज्ञान के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी में जनरल नॉलेज। कोई भी काम करना का तजुर्बा प्राप्त हो। मैं अब अपने वाणी को विराम देता हूं। -रोहित आनंद , मेहरपुर, पूर्णिया (बिहार), मोबाइल नंबर:~9334720170

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