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छंद – रामलाल द्विवेदी

तर्पण श्राद्ध सु भाव से, करें पितर को याद ।

धर्म मूल पाताल को ,सच्चे सुत आबाद।१।

 

पितृ पक्ष में पूजते, नित करते जल दान।

शास्त्र विहित श्रृद्धा करें, उनका हो कल्यान।२।

 

पितृ पक्ष में पूजिए, तर्पण कर नद ताल ।

काग श्वान गो भाग दें, करें श्राद्ध हर साल। ३।

 

पितृपक्ष में पूजिए, तर्पण श्रृद्धा धर्म ।

पूजित पितर अशीष दें, उऋण होत निज कर्म ।४।

 

जीवित में सेवा करें, पितृ दोष ना होय ।

पितृ कर्म से  भागते, सो सुत अंतहु रोय ।५।

 

जीवित पूजा मात पित, मृत सेवा बेकार ।

पाला हमको वृद्धि दी , उनका तन उपहार ।६

 

पित्र धर्म सबसे बड़ा, उऋण न जन्म हजार ।

पितृदोष ही पितृ ऋण, धुलता दोष न यार ।७

 

जीवित ही सेवा करो, मरे करो सम्मान ।

तर्पण श्राद्ध जिमाइए, हॅस ले पिंडी दान ।8

– रामलाल द्विवेदी प्राणेश, कर्वी,  चित्रकूट, उत्तर प्रदेश

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