लिखना मेरी मजबूरी है ,पाठक का ध्यान जरुरी है ।
झोपड़ियों में चूल्हे ठंडे , आज़ादी अभी अधूरी है ।।
ये महापर्व का हंगामा , दस्तक देता है ओसामा ।
संसद में कुछ अपराधी है ,जीजा साले हैं कुछ मामा ।।
पैंतिस में चिकन भरी थाली , उनतिस में हलुआ पूरी है ।
लिखना मेरी मजबूरी है , आज़ादी अभी अधूरी है ।।1
नेता सब माला माल हुए , हलधर भूखे कंगाल हुए ।
महँगाई डायन नाच रही , व्यापारी चिकने गाल हुए ।।
भूखों की अंतड़ियों से क्यों , रोटी की इतनी दूरी है ।
लिखना मेरी मजबूरी है, आज़ादी अभी अधूरी है ।।2
हिन्दू मुस्लिम को बांट रहे , वोटों की फसलें काट रहे ।
सच कहने वाले कवियों को , मंचों पर चमचे डाट रहे ।।
सच्चा दो दिन से प्यासा है , झूठे के पास अँगूरी है ।
लिखना मेरी मजबूरी है , आज़ादी अभी अधूरी है ।।3
अच्छे दिन आने वाले हैं , हमने भी सपने पाले हैं ।
पहले दो रोटी मिलती थी , अब तो उसके भी लाले हैं ।।
छाया क्यों ढूंढ़ रहा “हलधर”, सत्ता का पेड़ खजूरी है ।
लिखना मेरी मजबूरी है ,आज़ादी अभी अधूरी है ।।4
– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून