मनोरंजन

गीत – जसवीर सिंह हलधर

लिखना मेरी मजबूरी है ,पाठक का ध्यान जरुरी है ।

झोपड़ियों में चूल्हे ठंडे , आज़ादी अभी अधूरी है ।।

 

ये महापर्व का हंगामा , दस्तक देता है ओसामा ।

संसद में कुछ अपराधी है ,जीजा साले हैं कुछ मामा  ।।

पैंतिस में चिकन भरी थाली , उनतिस में हलुआ पूरी है ।

लिखना मेरी मजबूरी है , आज़ादी अभी अधूरी है ।।1

 

नेता सब माला माल हुए , हलधर भूखे कंगाल हुए ।

महँगाई डायन नाच रही , व्यापारी चिकने गाल हुए ।।

भूखों की अंतड़ियों से क्यों , रोटी की इतनी दूरी है ।

लिखना मेरी मजबूरी है, आज़ादी अभी अधूरी है ।।2

 

हिन्दू मुस्लिम को बांट रहे , वोटों की फसलें काट रहे ।

सच कहने वाले कवियों को , मंचों पर चमचे डाट रहे  ।।

सच्चा दो दिन से प्यासा है , झूठे के पास अँगूरी है ।

लिखना मेरी मजबूरी है , आज़ादी अभी अधूरी है ।।3

 

अच्छे दिन आने वाले हैं , हमने भी सपने पाले हैं ।

पहले दो रोटी मिलती थी , अब तो उसके भी लाले हैं ।।

छाया क्यों ढूंढ़ रहा “हलधर”, सत्ता का पेड़ खजूरी है ।

लिखना मेरी मजबूरी है ,आज़ादी अभी अधूरी है ।।4

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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