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हिंदी ग़ज़ल – जसवीर सिंह हलधर

नहीं बिजनौर से आयी न आयी है नगीने से ।

गुलाबी है ग़ज़ल मेरी लिखी  दो घूँट पीने से ।

 

बड़े उस्ताद शाइर भी ये नुस्खा आजमाते है ,

ग़ज़ल को कह रहे हैं जो सलीके से करीने से ।

 

मिले कुछ आसमाँ में घूमते असरार यूँ मुझको ,

सजाया शे”र में उनको सदाकत के जरीने से ।

 

जरा सी वोदका पीकर मेरा महबूब भी आया ,

इशारा कर रहे उसको मियाँ मतलूब जीने से ।

 

कई रातों को जागा हूँ कई दिन भी गवायें हैं ,

नहीं लिख पा रहा था छंद पिछले दो महीने से ।

 

दवाई की तरह पीना बहकना मत गँवारों में ,

कभी नफ़रत नहीं ढोना अदीबी के सफीने से ।

 

कभी बिजली कभी पानी बढ़ी है फीस बच्चों की ,

मुझे फुरसत कहाँ मिलती फटी पोशाक सीने से ।

 

जवानी तो जलाकर राख कर दी नौकरी ने यूँ ,

बुढ़ापा चल रहा “हलधर”लहू पिघले पसीने से ।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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