नजर से नजर को मिलाकर तो देखो
अजी चाहतो को सजा कर तो देखो।
हमे तो तुम्हारा नजारा न मिलता
कभी के है भटके ,बुलाकर तो देखो।
मिरी मुफलिसी का तुम्ही आसरा हो।
जरा ये नजर को उठाकर तो देखो।
हमी इक नजारा खुशी से बताये।
मिले साथ तेरा बनाकर तो देखो।
जहाँ मुझसे कहता,तुम्ही तो मिरी हो।
भूलोगे न *ऋतु को चुराकर तो देखो।
– ऋतु गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़