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हरिगीतिका – शिप्रा सैनी

निर्मित हुए हम एक से, तो भेद सबमें क्यों करें।

हम स्नेह की धारा बहा, संताप दुनिया के हरें।

अभिमान का अब त्याग करके, शान्ति जीवन में भरें।

अविराम भगवन ध्यान में ही, चित्त अपना हम करें ।

 

सूरज निकलता ओजमय, हर सुबह जैसे प्रखर।

उत्साह वैसा ही रखें, जीवन करें अपना मुखर।

जो तम घिरे दुख से भरा, तो दीप्ति आशा की जले ।

दामन रहे खुशियों भरा, संकट हमारा भी टले।

 

आधार हर संबंध का बस, प्रेम की ही डोर हो।

आभार मानव जन्म का ये, नित्य ही प्रभु ओर हो।

निस्वार्थ सेवा हम करें तो, ईश हमसे रीझते।

हाँ धन्य जीवन है उसी का, जो दिलों को जीतते।

– शिप्रा सैनी (मौर्या) जमशेदपुर

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