मनोरंजन

गीतिका — राजू उपाध्याय

खुश  रंगों  के पल तो थोड़े,,वो कम दे गया।

मिला  ज़िंदगी की  शाम में,पर, दम दे गया।

 

वारुं गीत सभी मैं उसके,प्रेम भरे स्पंदन पर,

मन की वीणा छूकर,वो प्रीत सरगम दे गया।

 

पुरवा पवन झकोरों से दिन दर्दीले हुये हमारे,

गंध चुरा फूलों से,वो मधुमासी मौसम दे गया।

 

उम्र दुपहरी तपता सूरज,जब हुये रेतीले दिन,

तपते रिसते घावों पे,छुवन की मरहम दे गया।

 

वर्षा बिजली बादल की छाई थी घनघोर घटा,

मेरे सावन को वो,,आंखों की शबनम दे गया।

 

रूप -रंग-नाम बताऊँ.यह छल मैं कैसे कर दूं,

वो सलोने बांकपन की,मुझको कसम दे गया।

– राजू उपाध्याय , एटा, उत्तर प्रदेश

Related posts

गीत (मधुवल्लरी छंद) – मधु शुक्ला

newsadmin

जन्माष्टमी – मधु शुक्ला

newsadmin

प्रभाती मुक्तक: – कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

newsadmin

Leave a Comment