माँ की दुआओ से बड़ी है क्या?
बोलो कहीं कुछ कमी है क्या?
देते सभी हैं धर्म के भाषण,
बातें किसी ने सच पढीं है क्या?
घूमे सभी यूं मंदिरों में पर,
कोई भी छवि मन में बसी है क्या?
उपदेश तो देते बहुत सारे,
पर आचरण में भी दिखी है क्या?
कर्जा कहाँ ‘ऋतु’ का उतारोगे?
अब प्यार करना भी तड़ी है क्या?
– रीतूगलाटी. ऋतंभरा, मोहाली