मनोरंजन

पुराने पल – झरना माथुर

आज भी याद आते है वो पुराने पल,

साधन सीमित पर सुकून के थे वो पल।

 

मोबाईल,माँल से अलग थी वो दुनियाँ ,

दादा-दादी के संग बितती थी ज़िंदगियाँ ।

 

मोहल्ले के एक घर में टीवी होता था,

पर सारे मोहल्ले का सुकून होता था।

 

लोगों में छल-कपट कम,एहसास होता था,

इंसान में इन्सान का आभास होता था।

 

पिज़्जा से स्वादिष्ट वो मोटी रोटी थी,

गुलगुले खाने की कशिश भी होती थी।

 

तब व्हाट्सएप्प के मेसेज नही थे,,

एक दूसरे से मिलने के बहाने बहुत थे।

 

समस्याओं का समाधान हो जाता था,

बहू,दामाद आसानी से मिल जाता था।

 

अब वो खूबसूरत वक़्त कहा रहा है,

आधुनिकता में लिप्त बशर भाग रहा है।

झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड

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