सुनो …
मेरी खामोशियां कुछ कहती हैं तुमसे…
तुम ..
सुन रहे हो ना ?
अगर सुन रहे हो …
तो पलटते क्यों नहीं …?
मेरी खामोशियों में क्या …
तुम्हें प्यार नजर नहीं आता …?
क्या मेरी बेचैनियां …
तुम्हें महसूस नहीं होती …?
अगर होती है तो ..
क्यों नहीं जवाब देते ..?
एक बार तो पलट कर देखो …
मेरी खामोशियों को समझो …
मुझे अपना लो …
अपनी बाहों में समेट लो …
बहुत तड़पी हूं तुम्हारे लिए…
जिंदगी जीना चाहती हूं तुम संग…
आजाद पंछी की तरह …
आसमान में उड़ना चाहती हूं तुम संग..
मेरी खामोशियों को महसूस करो …
और …
लौट आओ …
मेरी जिंदगी विरान है …
उसमें रंग भर दो…
जीने की एक उमंग भर दो …
खामोशियों में चहचाहट ला दो…
करो कुछ ऐसा…
कि…
जिंदगी तुम संग बिताऊँ …
खामोशियों को मेरी दफन कर दो …
कुछ ऐसी करम कर दो …
सुन लो ना मेरी खामोशियों को…
लौट आओ …
खामोशियां अब बर्दाश्त नहीं होती …
लौट आओ ना…
✍️सुनीता मिश्रा , जमशेदपुर