जिंदगी की ख्वाहिश है मुझे,
पग डंडी पर चलना मुश्किल है,
सारे फूल मगर यही,
आस पास खिलते है।
पंछी की तरह उड़ना चाहूँ,
तो जिम्मेदारी तले दब जाऊँ,
खुला आसमां नसीब नहीं,
पर चैन से मर जाना चाहूँ।
सुंदर चेहरों के पीछे
है राज कई,
टूटे ख्वाब को
बनाना चाहूँ,
इंक उम्र गुजर जाती हैं,
मगर
दिन रात के पहेली
से न निकल पाऊँ।
सभी को हँस के अपना लिया जब
तभी जिंदगी का
असली सुकून पाऊँ,
यथा तथा से भी
बच के निकल गई
फिर भी उलझनों
की दुनिया में ही
अपने मन को
न समझा पाऊँ।
शेष है बस इतना ही
हर स्थिती मे जीवन को ,
अकेले ही आसान
बना पाऊँ।
अनुभव है संगी साथी मेरे,,
जिनसे मे जीत के,
आसान जिंदगी की बगिया में,
ख़ुशी के प्रेम के शांति के,
फूलों को महका जाऊँ।
– जया भराडे बडोदकर,
न्यू मुंबई, महाराष्ट्र