कैसे मै भूलू तुमको जब तुमसे ही प्यार है,
माना दूर है मुझसे पर तेरा ही इन्तज़ार है।
आँखों में सूरत तेरी लगता है तू पास है,
अब तो मेरे सासो की बस तू ही झंकार है।
ये मुमकिन कब है प्रीतम दोनों का एक हो सफ़र.
पर साकी के पैमाने से कब तुझको इन्कार है।
अब खूं मे है मेरे दिलकश की मोहब्बतों-जुनूँ ,
अहवाल अब ये मेरा अब वो मेरे सरकार है।
तौबा तौबा है “झरना” तेरे ऐसे इश्क़ का,
उसको इल्म ही कब तेरा, कब तेरा इकरार है।
– झरना माथुर, देहरादून , उत्तराखंड