मनोरंजन

पूर्णिका – मणि बेन द्विवेदी

यादों में जिसके श्याम की गुजरी है जवानी,

मिलती  नहीं मीरा सी कोई प्रेम दीवानी।

 

पतवार  लिए  हौसले की हमने  है ठानी,

कश्ती  मेरी  टूटी  हुई  दरिया हैं तूफ़ानी।

 

सुन  नहीं पाओगे  मेरी  ग़म  की दास्तां,

कैसे सुनोगे  तुम मेरी  माजी की कहानी।

 

कैसे  गुजारे वक्त को यादों  के  सहारे,

कुछ पल के लिए आइए की रुत है सुहानी।

 

ये वक्त  कभी एक सा रहता नहीं यारों,

पानी में कभी  नाव  कभी नाव पर पानी।

 

एक दिन चली जाऊॅंगी तेरी ज़िंदगी से मैं,

तुम ढूढ़ते रह जाओगे बस मेरी निशानी।

 

कोशिश बहुत की तोड़ दू यादों का सिलसिला,

समझाया बहुत दिल कोमगर एक ना मानी।

 

ये वक्त का मिज़ाज बदलता ज़रूर है,

सुनता न दिलों की वो न सुनता है जुबानी।

– मणि बेन द्विवेदी , वाराणसी, उत्तर प्रदेश

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