वक्त लगा पर जान गया किरदार तुम्हारा जानेमन,
गिरगिट जैसा बदल रहा है प्यार तुम्हारा जानेमन।
कल तक मैं था आज खड़ा वो कल फिर कोई आएगा,
लट्टू माफ़िक घूम रहा आधार तुम्हारा जानेमन ।
कभी इधर को निकल रहा है कभी उधर को निकल रहा,
छद्म अमीबा सा छलता आकार तुम्हारा जानेमन ।
भोले भाले खरगोशों पर चुपके चुपके कदमों से,
घात लगाकर हमला करता स्यार तुम्हारा जानेमन।
मौका पाते धोखा देना फितरत आज जमाने की,
पाठ सिखाकर जाने का उपकार तुम्हारा जानेमन।
ख़ुद से ख़ुद की नज़र मिलाना दर्पण हाथों में लेकर
तुमको उत्तर मिल जाएगा यार तुम्हारा जानेमन।
हार सकूंगा कुछ भी कैसे तेरी इस अय्यारी पर ,
किन्तु हॄदय से बहुत बहुत आभार तुम्हारा जानेमन।
– भूपेन्द्र राघव, खुर्जा , उत्तर प्रदेश