फुहारें धरती माँ को
प्रेम से भिगो रही हैं,
तनिक बादलों में क्यों
बूंद बूंद छिप रही हैं,
हवाओं में सौंधी मिट्टी
की खुशबु महक रही है,
कोई तो सावन के लिए
झूलों में झूल रहा है,
भावनाओ को जैसे
संगीत मे घोल रहा है,
सुबह सुबह की किरणों
ने भी तन मन की
खुली राहें बिछा रखी हैं,
आज फिर अचानक
रिमझिम की कोई
नज़र उतार रहा है,
शाम तक न अब कोई
दिल को समझा रहा है,
चारों ओर बस यही
मौसम बहका रहा है,
आके बैठो जरा सी
देर सावन में
दिल को तरसा रहा है,
उफ ये कैसी बारिश में
अगन को बढ़ा रहा है,
मन के समुंदर में
तड़प की लहरें उठा रहा है,
फूल पौधे की रौनके
सभी को रीझा रही हैं,
कल तक नही थी जो आस
आज जाने कैसे
मिलन को बढ़ा रही है,
मायूस न हो ए दिल
तुझे पीहू की प्यास सी.
प्यार में संग दिल की
क्यों बरबस याद आ रही है.
ठहर जा जरा तू ए सावन
हर कोई तुझे क्यों
दिल से बुला रहा है।
– जया भराडे बडॉदकर
नवी मुंबई, महाराष्ट्र