हमेंशा मुझको गोद लिए ,
कितना प्यार तू करती है।
मैं गलती लाखों करके भी,
तू शिकायतें नहीं करती है।
हे मां मेरी धरती मां।।
आभूषण से सजती है जब,
कितनी सुंदर लगती है।
दर्द पता नहीं कितने तुझको
फिर भी तू मुस्काती है,
हे मां मेरी धरती मां ।।
सौंदर्य तेरा मैं देखकर,
पुलकित यूं हो जाती हूं।
स्वर्ग नाम तुझे मैं देती,
तुझमें ही खो जाती हूं,
हे मां मेरी धरती मां ।।
तुमने हमेंशा देना सीखा,
है कितने हम पर उपकार।।
पाप अनीति कितनी भी पर,
घूमती है सर पर लिए भार,
हे मां मेरी धरती मां ।।
तेरी गोद में जन्म लिया है,
लाखों वीर सपूतों ने ।
ओ वादा हमसे लेके गए,
और प्रेरणा हमको देके गए,
हे मां मेरी धरती मां ।।
बोझ धरती पर नहीं बनेंगे,
वृक्षारोपण करके रहेंगे।
मां तेरे उपकार के बदले,
अपने को ही सुधारेंगे,
हे मां मेरी धरती मां।।
सीख कर सीखा नहीं जो,
मां तेरे ममत्व से ।
“स्नेहा” का ये है मानना ,
कितना बड़ा नादान है रे,
हे मां मेरी धरती मां।।
– ममता जोशी “स्नेहा”
प्रताप नगर, टिहरी गढवाल उत्तराखंड