क्या कहे कहने को क्या पास है ,
मन ये दुखी और दिल उदास है।
भला वो क्या जाने दर्दे-जुदाई,
हमें तो जख्मे-दर्द का पास है।
वो जुदा क्या हुए हमें छोड़ कर ,
सूनी गलियां पनघट उदास है।
जो थे हमारे मुखालिफ कभी,
वही उनकी नज़र में खाश हैं।
नहीं भूला हूँ उसे अब तलक ,
मगर न आरज़ू न तलाश है।
किससे बयां करे हम हाले-दिल,
दिल जार- जार मन निराश है।
– विनोद निराश , देहरादून