रहा प्रेम ना सब मगन हो गया है।
दिखावे का जब से चलन हो गया है।।
भरी हैं बहुत नफरतें दरम्या में।
कितना आज देखो पतन हो गया है।।
सुलगते रहे देख सबाहत दूजे की।
बीमार हमारा ये तन हो गया है।।
कभी थी अब्र सी शबाब हमारी।
सभी को हमीं से जलन हो गया है।।
न मिला सुकूने-जिंदगी हमे तो।
जरा से भरा *ऋतु ये तन हो गया है।।
– रीतू गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़