मनोरंजन

गजल – रीतू गुलाटी

रहा  प्रेम ना सब  मगन हो  गया  है।

दिखावे का जब से चलन हो गया है।।

 

भरी   हैं  बहुत  नफरतें  दरम्या में।

कितना आज देखो पतन हो गया है।।

 

सुलगते रहे देख सबाहत दूजे की।

बीमार  हमारा ये  तन हो गया है।।

 

कभी थी अब्र सी शबाब हमारी।

सभी को हमीं से जलन हो गया है।।

 

न  मिला  सुकूने-जिंदगी  हमे तो।

जरा से भरा *ऋतु ये तन हो गया है।।

– रीतू गुलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़

Related posts

पुस्तक – ममता जोशी

newsadmin

बुरा न मानो होली है (व्यंग्य) – पंकज शर्मा ‘तरुण’

newsadmin

व्यंग्य पत्रिकाओं का व्यंग्य के विकास में योगदान – विवेक रंजन श्रीवास्तव

newsadmin

Leave a Comment