मुसीबतें कितनी भी हो न हमको आज रोना है।
बिछे हो अंगार दिल में न हिम्मत आज खोना है।।
लबो को हम सिल लेगें हमेशा की तरह चुप रह।
न तोड़ेगे कभी मुहब्बत भरा ये दिल भिगोना है।
अहा क्यो छोड़ देते महल अपना दुखी होकर।
गुजरता ये बचपन भी कहाँ अब लौट आना है।।
भले वो भूल चुके प्यार के किस्से बताने है।
दिले नादाँ सदा उनको हमे ही अब मनाना है।।
दिले जज्बात तुम कहो नही ये भूल कर *ऋतु।
घुटन बढने लगे सीने में तो हिम्मत जुटाना है।।
– रीतूगलाटी ऋतंभरा, चंडीगढ़