मनोरंजन

पर्यावरण – जि. विजय कुमार

पर्वत सोचता है ,

तूफानों से पृथ्वी को बचा सखे।

जानवर सोचता है,

आज मुझे खाना मिल सखे।

पक्षी सोचता है,

मुझे रहने को जगह मिल सखे।

वृक्ष सोचता है,

दूसरों को फूल, फल दे सखे।

पानी सोचता है,

सबका प्यास मिटा सखे।

धरती सोचता है,

कितनी भी वजन उठा सखे।

सूरज,चाँद , वर्षा सोचता है,

समय पर आ सखे।

आग सोचता है,

धर्म को न जलाने सखे।

लेकिन मनुष्य सोचता है,

इन सभी पर अधिकार हो सखे।

– जि. विजय कुमार, हैदराबाद, तेलंगाना

Related posts

ग़ज़ल – ऋतु गुलाटी

newsadmin

गीत – जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

newsadmin

गजल – रीतू गुलाटी

newsadmin

Leave a Comment