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कविता — जसवीर सिंह हलधर

देश के हित आज नूतन  सर्जना कर के दिखाएं ।

हम सिपाही कलम के उन्माद को जड़ से मिटाएं ।।

 

काल के मन पर नशे जैसा चढ़ा संवाद कविता ।

चेतना का शब्द रूपों में गढ़ा उत्पाद कविता ।

आँसुओं के तेज में इस्पात को कविता गलाती ।

खून से दीपक जलाकर भूख दीवाली मनाती ।

देश के सौदागरों को दूर सत्ता से भगाएं ।।1।।

हम सिपाही कलम के ————————-

 

हो कला की साधना का ध्येय जन कल्याणकारी ।

सृष्टि नवयुग की रचें हो  चाँद तारों पर सवारी ।

अब कलम ऐसे चले जो कौम का गौरव सहेजे ।

शब्द रूपी बाण से आतंक  के भेदें कलेजे ।

कुछ लिखें ऐसा की पतझड़ में बहारें मुस्कराएं ।।2।।

हम सिपाही कलम के —————————-

 

शब्द हम ऐसे चुनें जो राग को वैराग्य कर दें।

लेखिनी के जोर से दुर्भाग्य में सौभाग्य भर दें।

छंद सुनकर यह धरा भी मोतियों से मांग भर ले ।

वर्ग भेदों की शिलायें तोड़कर जन पांव धर ले ।

खेत में फसलें नचें खलिहान नाचें गीत गाएं।।3।।

हम सिपाही कलाम के —————————

 

पूंछती युग चेतना कुछ प्रश्न उन बाजीगरों से ।

राजनैतिक कीचकों से मज़हबी कारीगरों से ।

दुर्ग जो उनके खड़े हैं रक्त रंजीत आंकड़े हैं ।

ज्ञान वापी ,ताज के नीचे हमारे शिव पड़े हैं ।

सभ्यता से दासता के दाग को मिलकर हटाएं  ।।4

हम सिपाही कलम के उन्माद को जड़ से भगाएं।।

– जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

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