एक दिन का प्यार नही है माँ,
हर पल हर दिन पूज्यनीय है माँ।
वर्ष में मात्र एक दिन मां के लिए,
यह पाश्चात्य परंपरा नहीं तो क्या,
जिस मां की गोद में खेलन को,
नारायण भी नर का रूप धरते हैं,
इसीलिए नारायण से भी बड़ी है मां।
विश्व को हमने मातृ देवोभव: का पाठ पढ़ाया,
भारत विश्व गुरु बन विश्व में छाया,
छोड़ परायी संस्कृति सनातन अपनाओ,
रोज मां की पूजा करो हरी के गुण गाओ,
विश्व को पहला हम सिखाया मातृ देवो भवः।
– जि. विजय कुमार, हैदराबाद तेलंगाना