हम सफ़र हो हमारी मगर ज़िन्दगी !
भागती जा रही हो किधर ज़िन्दगी !!
जिस्म के साथ वादा निभा तो रही,
पास दिल के ज़रा तो ठहर ज़िन्दगी !!
हम भी नादान हैं तुम भी नादान हो,
और मुश्किल बड़ा है सफ़र ज़िन्दगी !!
एक नाराज़ हो एक नासाज़ हो,
कौन किसकी करेगा कदर ज़िन्दगी !!
पास आओ ज़रा चार बातें करें,
कुछ करेंगे इधर का उधर ज़िन्दगी !!
जो चढ़ा तो कभी फिर उतरता नहीं,
उस नशे में कभी तो उतर ज़िन्दगी !!
मौत आने से पहले मुझे आ मिलो,
मुंतज़िर है “मधू” की नज़र ज़िन्दगी !!
– माधुरी द्विवेदी “मधू”
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश