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कविता -हस्तिनापुर – जसवीर सिंह हलधर

टूटा फूटा हूँ अस्त-पस्त , मैं बिना सुरों का बाजा हूँ ।

गंगा के तट पर बसा हुआ , पुरखों का एक तकाजा हूँ ।।

 

मैं पतझड़ हूँ सूखा उदास, मैं बिलख रहा मारा मारा ।

कण कण में खोज रहा हूँ मैं,खोए वैभव का उजियारा।।

मैंने देखी है भीष्म बली के वाणों की बौछार यहाँ ।

मैंने देखा है पांडु और धृतराष्ट्र ,विदुर व्यवहार यहाँ ।।

भाई भाई में देखा है, मैंने तीखा टकराव यहाँ ।

गांधारी , कुंती , और माधुरी का देखा बर्ताव यहाँ ।।

सब ज्ञान और विज्ञान केंद्र , मेरे प्रांगण में चलते थे।

गुरुओं की निगरानी में ही , अर्जुन से योद्धा ढलते थे ।।

दुनिया का शक्ति केंद्र था मैं , अब खंडहरों का राजा हूँ ।

गंगा के तट पर बसा हुआ , पुरखों का एक तकाजा हूँ ।।

 

सदियों से भीष्म बली की , घायल काया को ढोता रहता ।

दुनिया में भारत की धूमिल छाया पर मैं रोता रहता ।।

अपने अतीत के वो निशान , मैं खंडहरों में ढूंढ़ रहा ।

अंधे राजा के कारण ही , मैं किंकर्तव्यविमूढ़ रहा ।।

आती रहती हैं आवाजें टकरा अतीत  के गहवर से ।

गंगा की लहरें आ आ कर बतियाती हैं उजड़े घर से ।।

इस इन्द्रप्रस्थ के कारण ही ,कुनवे को मैंने खोया था ।

काटा था मैंने वैसा ही , जैसा मैंने खुद बोया था ।।

द्वापर से आकर कलयुग में , खुलने वाला दरवाजा हूँ ।

गंगा के तट पर बसा हुआ , पुरखों का एक तकाजा हूँ ।।

 

पांडव तो स्वर्ग सिधार गए , परिक्षत का राज काज देखा ।

जनमेजय का शासन आया , पर धुला न कर्मों का लेखा ।।

अर्जुन गांडीव नहीं दिखता ना दिखा कर्ण का दान दिया ।

दृयोधन, दुस्साशन दिखते ना दिखा विदुर  का  ज्ञान दिया ।।

धृतराष्ट्र दिखाई देते हैं , आँखों पर हैं काले चश्मे ।

जो पुत्र मोह में रोजाना खाते रहते झूठी कस्में ।।

अर्जुन, माधव के सपनों में , संवाद सुनाई देते हैं ।

आँखें कलयुग में खुलती तो, अपवाद दिखाई देते हैं ।।

मैं काल खंड का वृत  चित्रण , मुर्दा हूँ मात्र जनाजा हूँ ।

गंगा के तट पर बसा हुआ पुरखों का एक तकाजा हूँ।।

– जसवीर सिंह हलधर, देहरादून

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